Love Shayari in Hindi
मोहब्बत नाम है जिसका वो ऐसी क़ैद है यारों,
कि उम्रें बीत जाती हैं सजा पूरी नहीं होती।
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वो रख ले कहीं अपने पास हमें कैद करके,
काश कि हमसे कोई ऐसा गुनाह हो जाये।
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टपकती है निगाहों से बरसती है अदाओं से,
मोहब्बत कौन कहता है कि पहचानी नहीं जाती।
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रूबरू मिलने का मौका मिलता नहीं है रोज,
इसलिए लफ्ज़ों से तुमको छू लिया मैंने।
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यह मेरा इश्क़ था या फिर दीवानगी की इन्तहा,
कि तेरे ही करीब से गुज़र गए तेरे ही ख्याल से।
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किसी का इश्क़ किसी का ख्याल थे हम भी,
गए दिनों में बहुत बा-कमाल थे हम भी।
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कुछ अजब हाल है इन दिनों तबियत का साहब,
ख़ुशी ख़ुशी न लगे और ग़म बुरा न लगे।
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मजा तो तब था दिल्लगी का, आग बराबर लगती,
न तुम्हें क़रार होता और न हमें क़रार होता।
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एक बार कर के ऐतबार लिख दो,
कितना है मुझ से प्यार लिख दो,
कटती नहीं ये ज़िन्दगी अब तेरे बिन,
कितना और करूँ इन्तज़ार लिख दो।
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तरस रहे हैं बड़ी मुद्दतों से हम,
अपनी मुहब्बत का इज़हार लिख दो,
दीवाने हो जाएँ जिसे पढ़ के हम,
कुछ ऐसा तुम एक बार लिख दो।
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इश्क़ तो बस मुक़द्दर है कोई ख्वाब नहीं,
ये वो मंज़िल है जिस में सब कामयाब नहीं,
जिन्हें साथ मिला उन्हें उँगलियों पर गिन लो,
जिन्हें मिली जुदाई उनका कोई हिसाब नहीं।
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इश्क है वही जो हो एक तरफा,
इजहार-ए-इश्क तो ख्वाहिश बन जाती है,
है अगर इश्क तो आँखों में दिखाओ,
जुबां खोलने से ये नुमाइश बन जाती है।
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जब भी आता है तेरा नाम मेरे नाम के साथ,
लोग जल जल कर ख़ाक हुए जाते हैं,
उड़ता है दिल से जैसे धुआँ,
बस वो छूने से ही राख हुए जाते है।
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ऐ आशिक तू सोच तेरा क्या होगा,
क्योंकि हस्र की परवाह मैं नहीं करता,
फनाह होना तो रिवायत है तेरी,
इश्क़ नाम है मेरा मैं नहीं मरता।
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इश्क़ को भी इश्क़ हो तो
फिर देखूं मैं इश्क़ को भी,
कैसे तड़पे, कैसे रोये,
इश्क़ अपने इश्क़ में।
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उससे कह दो कि
मेरी सज़ा कुछ कम कर दे,
हम पेशे से मुज़रिम नहीं हैं
बस गलती से इश्क हुआ था।
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इश्क में जिस ने भी
बुरा हाल बना रखा है।
वही कहता है
अजी इश्क में क्या रखा है।
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इश्क की चोट का कुछ
दिल पे असर हो तो सही,
दर्द कम हो कि ज्यादा हो,
मगर हो तो सही।
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इश्क़ करने से पहले
जात नहीं पूछी जाती महबूब की,
कुछ तो है दुनिया में
जो आज तक मज़हबी नही हुआ।
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दिल एक हो तो कई बार
क्यों लगाया जाये,
बस एक इश्क़ ही काफी है
अगर निभाया जाये।
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नक़ाब क्या छुपाएगा
शबाब-ए-हुस्न को,
निगाह-ए-इश्क तो
पत्थर भी चीर देती है।
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कभी तुम भी नज़र आओ,
सुबह से शाम तक हम को,
बहुत से लोग मिलते हैं,
निगाहों से गुज़रते हैं,
कोई अंदाज़ तुम जैसा,
कोई हमनाम तुम जैसा,
मगर तुम ही नहीं मिलते.
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बहुत बेचैन फिरते हैं,
बड़े बेताब रहते हैं,
दुआ को हाथ उठते हैं,
दुआ में यह ही कहते हैं,
लगी है भीड़ लोगों की,
मगर इस भीड़ में "साक़ी"
कभी तुम भी नज़र आओ,
कभी तुम भी नज़र आओ।
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मेरी रूह गुलाम हो गई है, तेरे इश्क़ में शायद,
वरना यूँ छटपटाना, मेरी आदत तो ना थी।
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मेरी आँखों में यही हद से ज्यादा बेशुमार है,
तेरा ही इश्क़, तेरा ही दर्द, तेरा ही इंतज़ार है।
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हमें तो प्यार के दो लफ्ज भी नसीब नहीं, और
बदनाम ऐसे हैं जैसे इश्क के बादशाह थे हम।
कितना लुत्फ ले रहे हैं लोग मेरे दर्द-ओ-ग़म का,
ऐ इश्क देख तूने तो मेरा तमाशा ही बना दिया।
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ठहरता एक भी मंजर नहीं वीरान आँखों में,
हमारे शहर से बादल भी बिन बरसे निकलता है।
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जश्न-ए-शब में मेरी कभी जल न सका इश्क़ का दिया,
वो अपनी अना में रही और मैंने अपने ग़मो को ज़िया।
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तूने हसीन से हसीन चेहरों को उदास किया है, ऐ इश्क़,
अगर तू इंसान होता तो तेरा कातिल मैं होता।
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वो कह के चले इतनी मुलाकात बहुत है,
मैंने कहा रुक जाओ अभी रात बहुत है।
गर हुयी हो कोई खता तो माफ़ कर देना,
मैंने कहा हो जाओ चुप इतनी कही बात बहुत है।
कुछ उम्र की पहली मंजिल थी,
कुछ रस्ते थे अनजान बहुत,
कुछ हम भी पागल थे लेकिन,
कुछ वो भी था नादान बहुत,
कुछ उसने भी न समझाया,
ये प्यार नहीं आसान बहुत,
आखिर हमने भी खेल लिया,
जिस खेल में था नुकसान बहुत।
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कोई कब तक महज सोचे,
कोई कब तक महज गाये,
इलाही क्या ये मुमकिन है,
कि कुछ ऐसा भी हो जाये,
मेरा महताब उसकी रात के,
आगोश में पिघले,
मैं उसकी नींद में जागूं,
वो मुझमें घुल के सो जाये।
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वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है,
बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है।
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उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से,
तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिये बनाया है।
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कहाँ से आई ये खुशबू ये घर की खुशबू है,
इस अजनबी के अँधेरे में कौन आया है।
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महक रही है ज़मीं चांदनी के फूलों से,
कभी क़रीब तो कभी दूर हो के रोते हैं,
मोहब्बतों के भी मौसम अजीब होते हैं।
दावे मोहब्बत के मुझे नहीं आते यारो,
एक जान है जब दिल चाहे माँग लेना।
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